खुश्बु (1975)
ओ माझी रे... गीत से आप सभी परिचित होंगे ही। ईस गीत के शब्द और गहराई जान कर ही अंदाजा लग जाता है की यह गुलज़ार साहब की कलम का जादु है। और मज़े की बात यह है की सिर्फ गाना नहीं बल्के पुरी फिल्म गुलज़ार साहब की है। जिसका नाम है खुश्बु। यह फिल्म ईतनी काबिल थी की एकेडमी एवोर्ड जीत सकती थी! हां ईसमें कोई एपिक बात नहीं, युध्ध नहीं, कोई बड़ी कथा नहीं लेकिन...
जैसे ओस्कार जीती हुई फिल्में ज्यादातर कोई न कोई पुस्तक या कहानी पर आधारित होती है, खुश्बु फिल्म भी बंगला साहित्यकार श्री शरतचंद्र के उपन्यास पर आधारित है। ईस में महामारी के प्रति एक डॉक्टर की कर्तव्य परायणता की बात है और दुसरी तरफ एक नारी अपने अधिकार के लिए लड़ रही है। तो कुल मिला कर एसा सामाजिक परिप्रेक्ष ईस फिल्म का प्लॉट है जो हर संजीदा दर्शक को जकड़े रखेगा।
कलाकार
पहले बात करतें है फिल्म के कलाकारों की। जम्पींग जैक जितेन्द्र, जिस्को सभी ने सिर्फ नाचते हुए, नखराले एक्टर के तौर पर देखतें है। लेकिन ईस फिल्म में गुलज़ार साहबने ईतना उमदा और धीरगंभीर रोल दिया है की पहली बार उन्हें देख कर सभी को अचंबा हुआ होगा। एसा ज्यादातर बंगाली डिरेक्टर किया करते थे। अनुपमा में धरमेन्द्र, आनंद में अमिताभ बच्चन वगैरह। वैसे जितेन्द्र के ईस 'लुक' का परिचय गुलज़ार जी पहले ही १९७२ में दे चुके थे और, जितेन्द्र के फैन्स उन्हें देख कर बह्त सराह भी चुके थे।
दुसरी ओर, फिल्म की एक्ट्रेस है हेमा मालिनी। ईन्हों ने बहुत कम मैकअप किया है और जैसे अपनी हर एक फिल्म में विग पहना करती थीं, वह भी नहीं किया है। लेकिन बावजूद ईसके, ईस फिल्म में वह ईतनी खुबसुरत लग रही है की क्या बात करें! ईसके अलावा उस दौर की एक ओर सुपरहीट एक्ट्रेस ईस फिल्म में नज़र आएगी। लेकिन वह आप खुद देख लिजीएगा। उनका वह रोल बाकी फिल्मों से एकदम हट कर है।
ईस फिल्म में असरानी है। अब हम सभी के ज़हन में असरानी की ईमेज तो कॉमेडी एक्टर की है ही। ईस फिल्म में भी वे आपको हंसाएगे। लेकिन बहुत मार्मिक और गरीब भाई का रोल उन्हों ने बड़ी सरलता से किया है, आखिर वे एक्टिंग स्कूल से आए है। यह रोल आपको याद रह जाएगा।
ईन सबके अलावा प्रसिध्ध बाल कलाकार मास्टर राजु को गुलज़ार साहब ने फिर से रिपीट किया है। साथ ही जानी मानी फरिदा जलाल भी हेमा मालिनी की सहेली के रोल में है।
कहानी
ईस फिल्म में बहुत सी परतें है जो एक के बाद एक आपके सामने उजागर होंगी। एक के बाद एक सक्षम कलाकार आएंगे जो कहानी को आगे ले जाएंगे। हेमा मालिनी, जितेन्द्र, असरानी अपने अपने हालातों से उभरने का प्रयत्न करतें है। साथ ही समाज के बंधनो का स्वीकार भी करतें है। मास्टर राजु, असरानी और फरिदा आपको जबरन मुस्कुराने पर मजबुर भी कर देंगे। पुरी कहानी पढने से कहां मजा देगी ? ईसके लिए तो यह फिल्म देखनी होगी। अगर आप लेखक है या शोर्टफिल्म वगैरह के शौकीन है तो यह फिल्म जरुर देखिए। आपको कैसी लगी वह जरुर कॉमेन्ट में लिखें।
गीत
गुलज़ार एक अव्वल दर्जे के गीतकार है, ईस में कोई दो राय नहीं है। हर एक गीत अलंकृत होता है और अलंकार भी रुपक या उपमेय होता है। दिल, प्यार, ईश्क जैसे शब्दों का तो गानों में नामो-निशां नहीं होता है। लेकिन अगर ये शब्द आ भी जाए तो ईसके मायने बहुत गहरे हो जाते है।
ओ माझी रे... गीत से आप सभी परिचित होंगे ही। ईस गीत के शब्द और गहराई जान कर ही अंदाजा लग जाता है की यह गुलज़ार साहब की कलम का जादु है। और मज़े की बात यह है की सिर्फ गाना नहीं बल्के पुरी फिल्म गुलज़ार साहब की है। जिसका नाम है खुश्बु। यह फिल्म ईतनी काबिल थी की एकेडमी एवोर्ड जीत सकती थी! हां ईसमें कोई एपिक बात नहीं, युध्ध नहीं, कोई बड़ी कथा नहीं लेकिन...
जैसे ओस्कार जीती हुई फिल्में ज्यादातर कोई न कोई पुस्तक या कहानी पर आधारित होती है, खुश्बु फिल्म भी बंगला साहित्यकार श्री शरतचंद्र के उपन्यास पर आधारित है। ईस में महामारी के प्रति एक डॉक्टर की कर्तव्य परायणता की बात है और दुसरी तरफ एक नारी अपने अधिकार के लिए लड़ रही है। तो कुल मिला कर एसा सामाजिक परिप्रेक्ष ईस फिल्म का प्लॉट है जो हर संजीदा दर्शक को जकड़े रखेगा।
कलाकार
पहले बात करतें है फिल्म के कलाकारों की। जम्पींग जैक जितेन्द्र, जिस्को सभी ने सिर्फ नाचते हुए, नखराले एक्टर के तौर पर देखतें है। लेकिन ईस फिल्म में गुलज़ार साहबने ईतना उमदा और धीरगंभीर रोल दिया है की पहली बार उन्हें देख कर सभी को अचंबा हुआ होगा। एसा ज्यादातर बंगाली डिरेक्टर किया करते थे। अनुपमा में धरमेन्द्र, आनंद में अमिताभ बच्चन वगैरह। वैसे जितेन्द्र के ईस 'लुक' का परिचय गुलज़ार जी पहले ही १९७२ में दे चुके थे और, जितेन्द्र के फैन्स उन्हें देख कर बह्त सराह भी चुके थे।
दुसरी ओर, फिल्म की एक्ट्रेस है हेमा मालिनी। ईन्हों ने बहुत कम मैकअप किया है और जैसे अपनी हर एक फिल्म में विग पहना करती थीं, वह भी नहीं किया है। लेकिन बावजूद ईसके, ईस फिल्म में वह ईतनी खुबसुरत लग रही है की क्या बात करें! ईसके अलावा उस दौर की एक ओर सुपरहीट एक्ट्रेस ईस फिल्म में नज़र आएगी। लेकिन वह आप खुद देख लिजीएगा। उनका वह रोल बाकी फिल्मों से एकदम हट कर है।
ईस फिल्म में असरानी है। अब हम सभी के ज़हन में असरानी की ईमेज तो कॉमेडी एक्टर की है ही। ईस फिल्म में भी वे आपको हंसाएगे। लेकिन बहुत मार्मिक और गरीब भाई का रोल उन्हों ने बड़ी सरलता से किया है, आखिर वे एक्टिंग स्कूल से आए है। यह रोल आपको याद रह जाएगा।
ईन सबके अलावा प्रसिध्ध बाल कलाकार मास्टर राजु को गुलज़ार साहब ने फिर से रिपीट किया है। साथ ही जानी मानी फरिदा जलाल भी हेमा मालिनी की सहेली के रोल में है।
कहानी
ईस फिल्म में बहुत सी परतें है जो एक के बाद एक आपके सामने उजागर होंगी। एक के बाद एक सक्षम कलाकार आएंगे जो कहानी को आगे ले जाएंगे। हेमा मालिनी, जितेन्द्र, असरानी अपने अपने हालातों से उभरने का प्रयत्न करतें है। साथ ही समाज के बंधनो का स्वीकार भी करतें है। मास्टर राजु, असरानी और फरिदा आपको जबरन मुस्कुराने पर मजबुर भी कर देंगे। पुरी कहानी पढने से कहां मजा देगी ? ईसके लिए तो यह फिल्म देखनी होगी। अगर आप लेखक है या शोर्टफिल्म वगैरह के शौकीन है तो यह फिल्म जरुर देखिए। आपको कैसी लगी वह जरुर कॉमेन्ट में लिखें।
गीत
गुलज़ार एक अव्वल दर्जे के गीतकार है, ईस में कोई दो राय नहीं है। हर एक गीत अलंकृत होता है और अलंकार भी रुपक या उपमेय होता है। दिल, प्यार, ईश्क जैसे शब्दों का तो गानों में नामो-निशां नहीं होता है। लेकिन अगर ये शब्द आ भी जाए तो ईसके मायने बहुत गहरे हो जाते है।
ओ माझी रे ईस फिल्म का सुपरहीट गाना है ही। ईस के अलावा बेचारा दिल क्या करे, घर जाएगी - तर जाएगी, दो नैनों में आसुं भरे है; जैसे कर्णप्रिय गीत आप को जरुर पसंद आएंगे। गुलज़ार के गीत हो तो अधिकतर समय संगीतकार कौन होता है यह तो आपको बताने की ज़रुरत है क्या?
अब 1975 का वह साल वैसे 'शोले' मय था। दीवार, जमीर जैसी फिल्मों से बच्चन धुम मचा रहे थे। ह्रिषीकेश मुकर्जी भी अपनी 'चुपके चुपके' और 'चैताली' जैसी फिल्म ले कर आए थे। गुलज़ार साहब खुद मौसम और एक कोन्टोवर्सीयल फिल्म 'आंधी' बना चुके थे। तो ईन सब फिल्मों के बीच एक साहित्यीक फिल्म का चलना वह भी भारत में....असंभव सा था। एवोर्ड की तो बात नहीं की जा सकती।
लेकिन अगर एसी साहित्यीक फिल्म अगर दर्शकों ने पसंद की होती, सुपरहीट हुई होती तो? शायद एसी फिल्में बनती रहती और आज बोलिवुड एक अलग मुकाम पर होता।

बहुत अच्छी कहानी और सुखद अंत। 🙂
ReplyDeleteईस ब्लॉग की पहली कोमेन्ट के लिए बहुत धन्यवाद! आशा है आप से मुलाकात होती रहेगी!
Deleteबहुत सुंदर विश्लेषण धन्यवाद
Deleteटिप्पणी के लिए धन्यवाद सर्वेशजी!
Deleteबहुत अच्छा लिखा है आपने। आपका कार्य सराहनीय है
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद Mr. Dagar जी! आशा है आप से फिर संवाद होगा |
Deletehttps://hindithela.blogspot.com/2022/06/blog-post_20.html
ReplyDeleteगुलज़ार सा'ब ने खुश्बु फिल्म से पहले परिचय फिल्म में जंपींग जेक कहे जानेवाले जीतेंन्द्र को बहुत संजीदा रोल दिया था। परिचय के बारे में यह पोस्ट ज़रुर पढियेगा।