विषय नाजूक है...जो किसी को पसंद या किसी को ना पसंद भी हो सकता है! पाठकों का सहयोग वांछित है।
लेकिन यह सच है की प्रेम स्कुलों में भी होता है! और यह मेरे ही अनुभव है, जो साझा कर रहा हुं। आपको अंत तक पता लग जाएगा की मेरे लिये यह कितना जरुरी था!
ईस से पहेले की आप अपनी भंवे उपर चढ़ा कर मुझे रोक लें....मै कहना चाहुंगा की यह कहानीयां सीधी-सादी और ईस फोरम में जारी करने योग्य ही है।
फिरभी, अगर किसी को आपत्ति हो तो मुझे अवज्ञत कराएं।
प्रकरण एक:
किसी महान लेखक ने कहा है की... हंमेशा एक लेखक की कहानी का नायक...स्वयं वह लेखक ही होता है!
आठवी कक्षा के शुरु हुए चार-पांच माह बीत चुके थे। मेरे लिए यह समय बहुत लंबा था। हम लोग सब अच्छे लडके गीने जाते थे। पढाई करते, होमवर्क करते, सारे सवालो के जवाब देते, लिमीट में मस्ती भी करते थे। हमारा गृप मतलब मुझे मिला कर चार से पांच लडके। सारी लडकीयां हमसे अच्छे से बाते करती थी। मजाक या मस्ती भी होती रहती थी। नोट्स एक्चेंन्ज होती थी, एक दुसरे को मदद करते रह्ते थे। या कमसे कम मै तो यही सोचता था!
ईन दिनो अजीब से बदलाव शरीर में आने लगे थे। आवाज़ बदलने लगी थी, हाईट बढ कर मम्मी जितनी हो गई थी। मेरा सारा ध्यान अब पढाई में कम लगने लगा था। और लड्कीयों से बात करना अच्छा लगने लगा था!
रेडियो पर बजते फिल्मी गाने और यहां स्कूल का माहोल मुझे दिवाना बना रहा था! यह कुछ केमिक्ल रीएक्शन जैसा था। एक नशा सा पुरे रात-दिन रहता था। अब यह हाल था की जब सन्डे आता तो मुझे सचमुच गुस्सा आता की यार यह सन्डे बीच में क्यों आ जाता है? मै बस कहीं उड़ रहा था...बस उडे जा रहा था! मुझे पता था की यह हकीकत है, कोई ख्वाब नही है। फिर भी....
लेकिन, लेकिन, लेकिन...मै जो था कभी ईश्क में नहि गिरा! ईसी तरह आठवीं से ले कर दसवीं कक्षा हंमेशा एक योग्य साथी के सपने ही देखता रह गया! कोई नही मिला...क्युं? नही पता! उन दिनो सुने गए गाने अब भी मुझे उसी माहोल में ले जाते है|
और मेरी कहानी यहीं समाप्त हो गई है!
और हां, याद आया...'लेखक ही नायक होता है' वाली महान उक्ति मेरे द्वारा ही लिखी गई है!
***
प्रकरण तीनः
प्रकरण दो के बाद मेरे पास शायद बताने को कुछ न होगा! क्यों के वही प्रकरण बहुत उलझा हुआ था और मै जल्दी जान नही पाया। ईसलिए अभी प्रस्तुत है प्रकरण नंबर तीन!
राधा और मनोज
राधा हमारे क्लास की शायद सबसे गरीब लड़की थी। आठवी कक्षा से वह हमारी स्कूल में पढ़ने आई। वह गोरी थी और एक दो विषयों को छोड़ पढ़ने में अच्छी ही थी। वह हमारे गृप में आते ही घुलमिल गई। उसका एक खास रोल था - सबको सलाह देना। वह सहेलीयों को बड़ी दीदी बन के सलाह देती। काजल. लक्ष्मी, अनु उसकी खास सहेलीयां थी।
मनोज एसा लड़का था जो हम में से किसी को जरा भी पसंद नहीं था। वह गाली-गलौंच करता था, लडाई करता था, पढ़ता नहीं था। शायद उसके वही गुण राधा को पसंद आ गए!
एक दिन रिसेस का समय था और क्लास में कुछ ही बच्चे थे। मनोज और उसका कोई फालतु दोस्त आपस में एक दुसरे को जोरो से गालिंया बके जा रहे थे। हम सबको सलाह देनी वाली हमारी 'दीदी' गैलेरी में खड़ी थी। वह खिडकी पर दोनो हाथ रख के क्लासरुम के अंदर देख रही थी। मैं दरवाजे पर ही खड़ा था, सो मैने राधा को देखा और उसके पास चला गया। वह मनोज को देखते हुए निराशा से बोली, "कितने बेशर्म है ये लड़के!"
मैने पुछा, "क्युं? तुमको तो पसंद है ना?"
वह मेरे सामने शांति से देख कर बोली , "हां।"
उसके बाद क्या हुआ पता नहीं। महिनों बाद एक बार मैं और मनोज स्कूल से छुट कर किसी काम से जा रहे थे। रास्ते में राधा का घर आता था, वो वहीं पर खडी कुछ काम कर रही थी। हम दोनो साईकल पर वहीं रुके और राधा से थोडी बातचीत कर के आगे निकल गए।
उसके कुछ महिनों बाद मै और मनोज साथ साथ घर तरफ जा रहे थे, मनोज का ओर एक दोस्त हमारे साथ था। वे दोनों पता नहीं क्युं लेकिन राधा के बारें मे गालियां दे-दे कर बातें कर रहे थे।
मुझे माजरा समज में नही आया, लेकिन गुस्सा आया, सोचा...ईस लड़के से दोस्ती रख कर राधा को क्या मिला?
***
प्रकरण चारः
अनु और विराट
राधा की एक सहेली काजल का भाई था विराट। वह हमसे एक कक्षा आगे मतलब की कक्षा नौ मे था। उसका गृप बडा और मज़बुत था। सब के सब लोग "भाई" थे। क्यों की काजल हमारे गृपमें थी, हमें भी विराट से हाथ मिलाने का मोका मिल जाता था जो बड़ी बात थी!
हमारी स्कूल में एक से सातवीं कक्षा का समय सुबह का था। हम लोग सातवी कक्षा से पास हो कर आठवी कक्षा में आए । हमारा स्कूल का समय अब बारह से साड़े पांच का हो चूका था। मै पहेले हफ्ते स्कूल गया ही नहीं।
मेरे बचपन का क्लासमेट राहुल अब मेरे घर के पास ही रहेने के लिए आ गया था। उसके साथ अब तक मेरी कबी बनती तो कभी बिगड़ती थी। लेकिन जब वह मेरे घर के पास आ गया हमारी गहरी दोस्ती हो गई....वो अब भी कायम है!
राहुल से बात कर के मुझे पता चला की एक से सात कक्षा में जो स्कुल है, वह आठवीं में एकदम बदल जाता है। सारे सर और मेडम का व्यवहार दोस्ताना है, हंसी मज़ाक भी चलता है। वे प्राथमिक कक्षाओं जैसे रुक्ष और कडक नहीं है!
उपर से समय में भी भारी बदलाव था। पहेले स्कुल जाने के लिए सुबह जल्दी उठना पड़ता था, अब जब चाहे उठो, खेलो, घुमो फिर स्कुल जाओ!
प्राथमिक कक्षा में एक ही रिसेस होती थी, लेकिन अब दो रिसेस...एक छोटी (दो पिरियड के बाद) और एक बडी (पांच पिरियड बाद)।
राहुल ने एक बात और बताई की कभी कभी फ्री पिरियड भी होते है, जब कोई शिक्षक पढाने नहीं आता।
ज्यादतर यह होता था की सातवीं कक्षा पुर्ण करने के बाद कई बच्चे स्कूल बदल देते थे। हमारा जो गृप था वह भी ईसी तरह बंट गया। आधे लोग दुसरी स्कूलों मे चले गए। उर्वशी, सिध्दार्थ...कई दोस्त छुट गए।
खेर, मुझे पता था की अब भी बहुत देखना बाकी है। दोपहर की स्कुल की का जो मज़ा था....वह वैसा ही था जैसा राहुल ने बताया था।
पहेले पहेले तो मुझे सेट होने में थोडा समय लगा, नए सर और मेडम जब हमें जान गए हमें सबसे आगे बैठाया। लेकिन ईस बार हम सच में पीछे बैठना चाहते थे....सातवीं कक्षा तक आगे बैठ बैठ के हम सब उकता चूके थे!
(प्रस्तुत चित्र प्रतिकात्मक है)
खैर अब वापिस अनु-विराट की कहानी पर आते है।
हमारी काजल और राधा के साथ
अनु की खुब बनने लगी। यहां तक की काजल और अनु एक दुसरे को बहुत मानने लगे।
शायद आपके नाक उपर की ओर चढ जाए...कि यह क्या बचपना है! लेकिन काजल अनु को
कभी कभी भाभी कह कर बुलाती थी! आप सोचीए जरा..हम सब बच्चे आठवी कक्षा के
थे!
अनु का का स्कूल के एकदम पास में था, ईसलिए अनु को रिसेस में घर
जाना पडता था। सो रिसेस में कभी वह हमारे साथ नहीं होती थी और ना ही विराट
से कभी मिल सकती थी। कभी फ्री पिरियड में या शनिवार को वे दोनो बातें करते
पाए जाते थे।
लेकिन हाय, यह ज़ालिम जमाना, खुदगर्ज दुनिया को यह आंखो देखा गंवारा न था!
यह कहानी यूं ही आगे बढती रही, हम नौवीं कक्षा में आ गए। अब हम सभी स्कूल में अच्छी तरह सेट हो गए थे। राधा और काजल भी स्कूल से निकल चूके थे, राधा का पता नहीं लेकिन काजल किसी ओर स्कूल में जा चूकी थी।
विराट दसवीं कक्षा में था और स्कुल में कम दिखाई देता था। यह उन दिनों की बात है जब ट्युशन क्लासिस का दौर चल पडा था। स्कुली शिक्षक ही ट्युशन करवाया करते थे, जिनका फायदा उनके स्टुडन्ट को स्कूलों में मिलता था। ट्युशन जाने वाले बच्चे स्कुलों में कम आते थे या बड़ी रिसेस के बाद घर चले जाया करते थे।
एक बार बात यह हो गई की स्कूल में नए प्रिन्सीपल साहब आए थे। वे बड़े बदलाव करने की कोशिक करते थे। उनको यब बात पता चली। उन्हों ने दोनो को रंगे हाथ पकड़ना चाहा।
एक क्लास रुम में फ्री पिरियड चल रहा था। क्लास में बस चार-पांच बच्चे थे। वहां ये दोनो अनु और विराट पीछले बैन्च पर बैठ कर बतियाने लगे।
प्रिन्सिपाल जी वहां पहूंच गए और दोनो को डांटने लगे। दोनो अपने अपने क्लास में भाग आए। प्रिन्सिपल साहब क्लास में आए और अनु को खूब डांटा। उसे रोते हुए घर भेज दिया... पेरेन्ट्स को बुलवाने के लिए।
वह कहती रही के एसा मत करें...लिकिन साहब ने एक न सूनी।
फिर उसकी मम्मी आई...पुरे क्लास के सामन अनु को दो तमाचे मारे और घर ले गई।
अनु की फैशनेबल बाल दुसरे दिन से सीधे, चीपचीपे हो गए। वह एक साल अनु स्कुल में रही, उसके बाद उसे स्कूल से उठा लिया गया।
***
प्रकरण दोः
काजल-राज
यह वही प्रकरण है जिसने मेरे छोटे से दिमाग को उलझाए रखा। सातवीं कक्षा से काजल हमारे गृप में थी। लेकिन आठवीं में वह राधा, अनु, दीपक और संजय के साथ हो गई। उस गृप से जुड़ते जुड़ते दो तीन महिने निकल गए। मुझे अभी भी याद है ओगस्ट के महिना और बारिश वाले दिन थे। हम बैन्चीस पर उपर-नीचे बैठे थे और हंसी का जाने गुबारा फट पडा। मुझे लगा की यह गृप अब कभी नहीं तुटेगा। हम सब बहुत खुश थे, नया गृप बन चूका था!
एक दिन काजल उदास थी, हम सब के पुछने पर उसने बताया कि राज उससे बात नहीं कर रहा है। ईस कारण से वह उदास है। मै वाकई उल्लु था, रीसेस में मैने राधा से पुछा, "ईसका मतलब क्या है? राज अगर ना बोले तो काजल क्युं उदास है?"
राधा बोली, "क्युं के दोनो चालु है!"
"चालु मतलब?" मै ओर उलझा!
"उसी से पुछो।" राधा उकता कर नीचे चली गई।
रीसेस जब खत्म होने आई मै क्लास में आया, राधा काजल को कुछ समजा रही थी! हमारे गृप की सारी लड़कीयां और दो लड़के बैठे हुए थे।
मैने पुछा, "क्या हुआ?"
"कुछ नही" काजल बोली।
"एक बात बता तो जरा?" मुझे वाकई में उत्सुकता थी।
"क्या?" काजल बोली। अब वह स्वस्थ थी।
"क्या तुम और राज चालु हो?" मैने भोलेपन से सब के सामने पुछ लिया!
फिर जो हमारे गृप का ठहाका पुरी क्लास में गुंजा है!!!
काजल पहेले तो भौंचक्की रह गई थी...फिर वह भी ठहाके की गुंज में शामिल हो गई। मुझे पता चल गया, की बेटा आज फिर से कोई गलती हो गई।
काजल ने पुछा, "तुझे पता भी है, 'चालु' का मतलब?" मैने ईनकार में सर हिलाया।
वह बैन्च से खडी हो कर मेरे कान में फुसफुसाई, "ईसका मतलब, मै राज से प्यार करती हुं!"
यह सुनते ही मैरे तन-मन में जैसे बीजली सी दोड़ गई! मुझे पता थो था की एक बला है तो सही, जिसे लोग प्यार कहेतें है। टीवी और फिल्मी गानों में मैने देखा तो था यह सब कुछ। लेकिन क्या वह सच में होता है!!! वह भी उम्र के ईस दौर में? स्कूल में?
(प्रस्तुत चित्र प्रतिकात्मक है)
यह वाकई आपत्तिजनक था/है। स्कुलों मे शिक्षकों को भी पता होता है...बच्चें है, ईनमें उत्सुकता और बचपना होता ही है। वातावरण ही एसा कुछ हो जाता है की फिर मां-बाप के संस्कार ही कुछ कर सकते है। बच्चा अगर बिगड़ता नही है, फिर भी कहीं न कहीं उसे एसे वातावरण का सामना तो करना ही पडता है!
पहेले मुझे लगता था की हमारे स्कुल में क्या हो रहा है! फिर कोलेज जा कर पता चला की सभी स्कूलों मे यही हाल था!
एक बात अच्छी है कि हम ईस मामले में अमेरिका से पीछे है।
काजल राधा के साथ स्कुल से छुट कर एक-दो बार राज के घर भी गई थी। वहां जब वह राज की मम्मी-पापा से मिली तब उसे लगा की राज की मम्मी को ईन दोनो के बारे में पता है।
मैरे घर का भी रास्ता राज के घर से होता हुआ जाता था। उसके बाद मै कभी देख लिया करता था की काजल की खटारा साईकिल वहां है या नही!
बाद में पता चला कि काजल जी के लक्षण कुछ ठीक नहीं थे। उसको कई लड़कों ने पूछा था। और वह उलझतीं ही जा रही थी। राधा कभी कभार उसको यह सब चक्करों से बचने कि सलाह देती होगी, लेकिन अब वह वैशाली के साथ अधिक घुमने फिरने लगी थी।
मुझे और राहुल को भी ओर कोई टयूशन ठीक न लगा तो काजल के गृप के साथ एक जगह ट्युशन जाने लगे थे। एक बार ट्यूशन का एक ओर लड़का उसकी नोटबुक ले कर भागा। काजल उसके पीछे भागती रही लेकिन उसने बुक नहीं दी। रास्ते में वापस वे खडे रहे और फिरसे भागाभागी की। आखिर में उकता जाने के बाद ही काजल को वह नोटबुक वापस मीली।
मैने पता किया तो खबर मीली की वह लड़का भी काजल के पीछे पडा था। उसने अपने हाथों पर भी "टी" का टेटु बना रखा था!
मुझे अच्छी तरह याद है...काजल का एक लवलेटर भी हमारे हाथों लगा था। उसकी राईटींग बहोत ही ज्यादा खुबसुरत थी। उपर से रंगीन बॉलपेन से दो छोटे पेज भर के उसने लवलेटर लिखा था। जिसमें उसने राज को ढेर सारी हिदायतें दी थी। दो चार शायरीयां थी, शायद एक गीत की पंक्ति भी थी।
चीजें अगर बद से बदतर हो, उनमें से सीख लेना एक महान ईन्सान की निशानी है। अतः मैने उस लव लेटर से सीखा की धीरे धीरे और प्रेम से लिखने पर लिखाई और अक्षर दोनों सुधर सकते है।
मैने प्रथम तो अपनी कोपी पर नज़र डाली तो कुछएक वाक्य मेरे खुद के भी पढने में नहीं आ रहे थे। लेकिन मैने प्रेक्टिस चालु रखी। जब तक दो - तीन मित्रो ने और स्वयं हमारे क्लास टीचर ने मेरी लिखाई की प्रशंसा नहीं की, मैने अपनी प्रेक्टिस नहीं रोकी!!!
वह पैसे भी एसे उडाती थी मानो उसके पास पैसे छापने की मशीन हो। दिन के दस-बीस रुपये तो यूं ही खर्च कर देती थी। कभी हम सब मिल के पांच रुपये का नमकीन खरीदते थे, काजल अकेले ही पुरा पेकेट खरीद लाती थी। फिर सब मिल कर खाते थे। रोजाना चोकलेट, च्यूंईंगम खाना और खिलाना उसका शौक था।
काजल अपनी एक कोपी के पीछले पन्नों पर अपने फेवरेट गानें लिखती थी। कभी वह
रेडियो से सुन कर सीधा ही लिख लेती थी...वह भी सुंदर अक्षरों से।
उसको देख कर हम में से कई लोग एसा करने लगे, हमारी कोपी के पिछले पन्ने गीतो से भरने लगे!
उसने
राज का परिचय हम सब से भी करवाया । हमने सबने मिल कर एक गृप फोटो खींचने
का सोचा...जो कभी हो न पाया । मैने वह प्लान के लिए पैसे भी जमा कर लिए थे,
वह फिर नोटबुक खरीदने में खर्च हो गए।
ईस दौरान एक बडा ही फिल्मी टाईप का किस्सा हो गया। एसा तो कोई सोच भी नहीं सकता।
हमारा क्लासरुम सबसे उपर के फ्लोर पर था। वहां से नीचे आने जाने की सीडीयां थी। वहीं सबसे उपर की दीवार पर कीसी ने एकदम बडे अक्षरों मे "आई लव यु काजल" लिख दिया था!!!
हम सब समज नहीं पा रहे थे की क्या कहें, क्या करें। लेकिन काजल एकदम शांत नज़र आई। फिर हम सब ने मिल कर एक उंचे लडके को कहा की भाई तुम कैसे भी कर के उस दिवार तक चढ़ो, हो सके तो वह लिखाई साफ कर दो बाबा!
ईस दौरान दो पिरियड भी बीत चुके थे। एक टीचर भी उपर आ कर, पढा कर गई थी। फिर रीसेस के समय वह साफ कर दिया गया। फिर भी थोडा-थोडा दिख रहा था।
जैसे की अनु (प्रकरण चार वाली) का हाल अगले साल में होने वाला था, काजल का ईसी साल हो गया। उसका भाई जो राज के क्लास में ही था और उसे यह सब पता चला। दुसरे दिन बात आई की आज दोनो लड़ने वाले है।
काजल उस दिन आई नहीं थी। हम सभी नीचे खड़े हो गए, यह देखने की क्या होता है।
स्कूल के सामने ही दो गुट आमने सामने आ कर बैठे हुए थे। राज वहीं पर था और सब विराट की राह देख रहे थे। जैसे ही विराट आया दोनो भीडे-न भीडे सब लोगो ने उन दोनों को पकड लिया। स्कूल का प्यून भी बीच में आया और विराट को समज़ा कर बाजु में ले गया।
आठवीं खतम होते ही उसकी स्कुल बदलवा दी गई! आगे की कहानी फिर किसी को नही मालुम। दो साल बाद फिर से वह एक बार मुझे अचानक मिल गई। थोडी बातें की, दोस्तों को याद किया। लेकिन उनकी प्रेमकहानी के बारे में मैने पुछना उचित नहीं समझा।
***
आप भी सोचतें होंगे की कैसा होगा यह स्कूल!! लेकिन मैने हंमेशा देखा है की कई स्कुली बच्चे जीनकी आयु १२-१३ वर्ष की या १३-१४ वर्ष की होती है वे भी ईस प्यार नामके खतरनाक वाईरस का शिकार हो जाते है! मेरे स्कुल में भी उसके बाद कई किस्से हुए। दुसरी बड़ी स्कुलों के भी किस्से वहां पढ़नेवाले दोस्तों से सुने।
तो एसा रहा मेरा ८ वीं से १० वीं का सफर! एसी बातें आप कहीं शेयर भी नहीं कर सकते। ब्लोग या फेसबुक पर तो बिलकुल नहीं। हां उस वक्त एक - दो बार दोस्तो से शेयर की थी लेकिन ईससे मन को तसल्ली कैसे हो सकती है? जब बारिश होती है या बारह बजे की धुप में पुराने रास्तों पर जाना होता है स्कुल बहुत याद आती है। उस दौर का कोई गीत सुनने को मिले या फिल्म देखने को मिले तो लगता है की वे दिन अब कभी नहीं आएगें।
लेकिन यहां एक अन्जान बन के बेझीझक पुरानी यादें शेयर कर के सुकून मील रहा है....जो बयां करना भी मुश्किल है।
अस्तु! (सभी पात्रों के नाम बदलें हुए है एवं, सभी प्रस्तुत चित्र प्रतिकात्मक है)










No comments:
Post a Comment