Monday, 20 June 2022

गुलज़ार कौन है?

गुलज़ार कौन है?
सिर्फ गीतकार? या फिर लेखक? या फिर उमदा फिल्म दिग्दर्शक?

गुलज़ार साहब की जीवनी तो उनके प्रसंशक जानते ही है । लेकिन मुझे उनके रचनाएं प्रायः प्रेरणा देती रहीं है। उन दिनों (९० के दशक में) मेरे पास न थो ईन्टरनेट था या न तो फिल्मी मेगझीन्स खरीदने की 'लक्झ्युरी'। लेकिन फिल्म सत्या के बाद मैनें उनको 'फोलो' करना शुरु कर दिया था। बड़ी उम्र के मित्रों से पता चला की उनके कई गीत बहुत प्रसिद्ध है जैसे की 'मासुम' के।

फिर क्या है! हमने उन दिनों के जेब खर्च से जैसे तैसे ३० रुपये ज़मा कर के मासुम की ओडियो केसैट लिया। उस केसैट की दुसरी साईट फिल्म 'घर' के गाने थे । जैसे फिटकरी और चोखा रंग वाला मुहावरा । मुझे तो घर के गाने भी बहुत अच्छे लगे ! लेकिन एक बात ध्यान में आई की 'मासुम' का 'लकडी की काठी' वाला गाना अगर गुलज़ारजी लिखतें है तो उन्हों ने कई गीत बच्चों के भी लिखें होंगे?

फिर कुछ समय शनैः शनैः बाद कहीं कहीं से पता चला । लकडी की काठी, जंगल जंगल बात चली है, टप टप टोपी टोपी, पोटलीवाले बाबा, चुपडी चुपडी चाची वगैरह गीत उनके ही है । फिर किसी अख़बार में पढने मिला की हम जो प्रार्थना बचपन से स्कूलों में हररोज करते थी, वह भी उनकी लिखी हुई है - हमको मन की शक्ति देना!

फिर उनका लिखने का अंदाज़ समज में आने लगा और गुलज़ार सा'ब के हम 'फैन' होते गए! उस दौरान दो और ओडीयो केसैट खरीदे गए । एक था 'सनसेट पोईन्ट' और दुसरा 'अब के सावन' । 'कच्चे रंग उतर जाने दो' गीत कहीं सुना लगता था जो एक सिरीयल का टाईटल सोंग भी था । लेकिन 'अब के सावन' जिसके गीतकार पसून जोशी थे, उनकी स्टाईल मुझे गुलज़ार सा'ब की लगी और ठीक वही बात प्रसून जोशीजी ने कहीं कोई आर्टीकल में पुष्टी भी की!

तब तक सब कुछ ठीक था। अगर कोई पुछे की मेरा पसंदीदा गीतकार कौन हे तो एक ठोस जवाब मेरे पास था । लेकिन फिर दूरदर्शन पर पुरानी फिल्म देख कर पता चला की ईन्हों ने तो फिल्म भी डाईरेक्ट कर के रखी है! उन दिनों 'माचिस' भी आनेवाली थी। फिर अखबार या मेगेझीनों से पता चला उनकी 'परिचय' फिल्म के बारे में । उन दिनों केबल टीवी चलता था लेकिन मेरे घर पर उसका मना था । सोचता था शायद 'परिचय' देखने को मिल जाए । लेकिन सपना अगले ४-५ साल पुरा नहिं हुआ ।

फिर धीरे धीरे आया डीजिटल युग - फिल्मों का, गानों का ! अब उंट पहाड के नीचे आ चुका था । 'परिचय' की एसी डीवीडी मिली जिसमें गुलज़ार की दो ओर फिल्में थी । ईन्टरनेट भी पधार चूका था और सारी जानकारी जो मुझे जानने को बरसों लगे थे, एक ही क्लिक में पुख़्ता हो गई! वाह!

अब जब मैं उनकी परिचय, खुश्बु जैसे फिल्में देखता हुं तो उनकी स्टोरी टेलिंग बहुत भाती है । 'परिचय' में जम्पींग जैक जितेन्द्र को अतिगंभीर भूमिका देना वही मानों RGV जैसी सोच थी। 'खुशबु' कहानी की परतें एक के बाद एक खुलना भी रोमांचकारी है । फिर खुश्बु की ही एक कहानी पर से पुरी 'नमकीन' फिल्म बना देना भी एक सुंदर कला थी ! 

गुलज़ार साहब के लिखे गीत मुझे बहुत पसंद है….

  • मुसाफिर हुं यारो
  • आनेवाला पल
  • ओ माझी रे
  • ईस मोड से जाते है
  • तुम आ गए हो
  • हज़ार राहें
  • रुके रुके से कदम
  • तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा
  • मैने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने
  • कहीं दुर जब दीन ढल जाए
  • बेचारा दिल क्या करे
  • रोज रोज आंखो तले, एक ही सपना चले
  • फिर वही रात है
  • एक वो दिन भी थे, एक ये दिन भी है
  • छै छप्पा छै, छप्पाक छै, पानीयों के/पे छींटे उड़ाती हुई लडकी
  • छोड़ आए हम…वो गलियां


एक कार मिकेनिक जिन्हों ने फिल्मों के लिए उत्कॄष्ट गाने लिखे, पटकथा लिखी, त्रिवेणीयां भी ईज़ाद की, फिल्में बनाई, जय हो के लिए विश्वभर में नामांकन हुआ… उनको एक शब्द में कैसे बयां किया जाए की कौन है गुलज़ार?


गुलजारजी की फिल्म 'खुश्बु' के बारे में यहां क्लिक कर के पढें। | गुलजारजी की फिल्म 'परिचय' के बारे में यहां क्लिक कर के पढें। | बासु चैटर्जी की फिल्में

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