14 नवंबर 1992, शनिवार की शाम दूरदर्शन पर एक एसी फिल्म दिखाई थी, जिसका अर्थ मुझे तब जा कर समज आया... जब लगभग 2010 में जब ईस फिल्म की सीडी मेरे परममित्र ने मुझे भेंट में दी! देखिये ना, एक पंक्ति में कितने साल बित जातें है! मुझे एक प्लेटफोर्म चाहिए था जहां मन खोल कर ईस फिल्म के बारे में लिख सकुं।
आज २०२२, लगभग तीस सालों के बाद उसी फिल्म के बारे में, मै फिर से लिख रहा हुं! एसा नहीं है की पहले मैने ईस फिल्म के बारे में नहीं लिखा। बहुत से फोरम, सोशियल मिडीया, सवाल-जवाब के प्लेटफोर्म पर ईस फिल्म के बारे में मैने ढुंढा, लिखा और ईस फिल्म के बारे में सबको बताने का प्रयत्न किया।
ईस फिल्म का नाम है, 'थोडा सा रुमानी हो जाए'। मशहुर एक्टर अमोल पालेकरजी ने दूरदर्शन के साथ यह म्युझिकल फिल्म बनाई थी। म्युझिकल फिल्म का अर्थ है... कहीं भी-कभी भी संवाद गाने का रुप ले लेता हो।
यह फिल्म कई 4-5 फिल्मों पर आधारित है, जिनका क्रेडिट आखिर के आउट्रो टाईटल्स में दिया गया है।
पात्र परिचयः
कहानी की नायिका एक एसी लड़की है जिसकी शादी की उम्र बीती जा रही है। वह बिन माँ की लड़की 'बिन्नी', अपने पिता और दो भाएयों के साथ एक बहुत छोटे से शहर में रहती है। गर्मी का मौसम था और बारिश के कुछ आसार नहीं। बिन्नी अपने पिता और भाईयों की लाडली है। वे तीनों उसकी शादी की फिक्र करतें है। हालां कि, बिन्नी दिखने में साधारण है। अधिक गोरी नहीं, लड़कीयों जैसे नखरे नहीं। शायद, उसकी माँ होती तो उसका स्वभाव थोड़ा अलग हो सकता था।
बिन्नी के पिता खुद बहुत खुशमिजाज़ ईंसान है। वह अधिक फिक्र नहीं करते और बिन्नी की हर ईच्छा को मान देतें है। बिन्नी का छोटा भाई जिसका नाम 'बीम' है, वह अभी बच्चे से जवान हो रहा है। वह अपनी स्वतंत्रता चाहता है, और बड़ा दिखना चाहता है। लेकिन उसकी नादानी अभी जाने को है। ईन तीन पात्रों की आपस में एकदम एकदम बनती है।
बिन्नी के बड़े भैया, जो ईंजीनीयर भी है... वह घर में पैसे कमानेवाला ईंसान है। वही है जो घर को अपने कंट्रोल में रखना चाहता है। वह खुद को बहुत प्रेक्टीकल समजता है और बिलकुल एसे ही बातें भी करता है। वह बिन्नी को ले कर अपने पापा की तरह अधिक आशावादी नहीं है। वह सबको, वास्तविकता समझाना चाहता है, उसे स्वीकार करने को कहता रहता है।
कहानीः
बिन्नी की मुलाकात उस छोटे से शहेर के - नये मेयर से होती है। मेयर तलाकशुदा ईंसान है, धीर गंभीर विचार रखता है। जब बिन्नी के पापा और बीम की मुलाकात जब मेयर से होती है, उन्हें मेयर बहुत अच्छा ईंसान लगता है। वे सोचते है की बिन्नी की शादी अगर मेयर से हो जाए...
लेकिन, मेयर शादी करना नहीं चाहता। बिन्नी अपने अकेलेपन से झूझ रही है। बीम भैया द्वारा अपने उपर हो रही सख्ती से परेशान है। बडे भैया सुखे की चिंता कर रहें है। बिन्नी के पिता अब कभी कभी बिन्नी की चिंता करने लगे है।
फिल्म के मध्य हिस्से में एक और पात्र प्रविष्ट होता है। ईस पात्र के बारे में यहां उजागर करना ठीक नहीं रहेगा। हालांकि पोस्टर और कवर पर उसी को हीरो के तौर पर दिखाया जाता है। लेकिन मेरे विचार से ईस कहानी का कोई मुख्य पात्र नहीं है। बीम जैसा छोटा पात्र भी कहानी का महत्तम हिस्सा है। ईस तरह कहानी पुर्णतः सभी पात्रों और परिस्थितियो पर निर्भर है।
ईस बीच, भास्कर चंदावरकर द्वारा रचित कर्णप्रिय संगीत और गीत आतें है... जो कहानी के मुड को और प्रभावशाली बनातें है। एक शांत, गंभीर, अचानक हंसी की फुहार बरसानेवाली, आपको सुखे और बिन्नी की बीतती उम्र की चिंता देनेवाली यह फिल्म... आगे एसा मोड लेती है जो मै अच्छी तरह लिखना चाहता हुं। लेकिन यह फिल्म के साथ बेईमानी होगी!
लेकिन ईतना ज़रुर कहुंगा की, फिल्म के उस मोड़ पर ह्युमन बिहेवीयर की उस आदत को उजागर किया है... जहां कोई उम्मीद न होने पर लोग चमत्कार और जादु में कैसे विश्र्वास कर लेतें है! उस संवाद और परिस्थितियों का मिलन आप फिल्म के मध्य हिस्से में जरुर देखिए, बहुत मज़ेदार है!
यह फिल्म के बारे में पता चला की, यह फिल्म प्रदर्शित भी हुई थी और बुध्धीजीवी लोगों ने पसंद भी की थी। लेकिन एसी फिल्म जो मेन स्ट्रीम सिनेमा से अलग हो उसका प्रचलित या हीट हो पाना बहुत मुश्किल है। 1991 में बनी यह फिल्म 1993 में दुरदर्शन पर दिखाई गई ईसलिए उस वक्त सबको देखनी पडी होगी, एसा मै समजता हुं! दुरदर्शन पर ईस फिल्म के प्रसारण की तारीख ईस लिए ईतनी पक्की लिख पाया हुं, क्युं की बचपन में दुरदर्शन पर दिखानेवाली फिल्मों के नाम मुझे डायरी में नोट करने की आदत थी!
ईस फिल्म के पात्रों को किसी कॉलेज में ह्युमन बिहेवीयर के चेप्टर में शामिल किया गया है। सारे पात्रों की तटस्थता, एकदुसरे से मिल कर नीकल रहे प्रतिभाव वगैरह देखना बहुत रोमांचकारी है। सीधा सीधा एक सकारात्मक संदेश भी है, जो ईसके शीर्ष गीत में अच्छी तरह कहा गया है....
बादलों का नाम न हो, अंबर के गांव में।
जलता हो जंगल खुद, अपनी छांव में।
यही तो है मौसम (२)
आओ तुम और हम, बारिश के नग़्में गुनगुनाएं...
थोडा सा रुमानी हो जाए!
यही ईस फिल्म की मुख्य थीम / सीख है। ईतनी तकलीफों में भी हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए, तपती धुप में बारिश ना सही, बारिश के गीत तो गा ही सकतें है!
आशा है आप यह फिल्म ज़रुर देखेंगे। युट्युब पर फिल्म एक क्लिक में उपल्ब्ध है, और जिसे ढुंढने के लिए मेरे 6-7 साल गुज़र गए थे!
आशा है आप यह फिल्म ज़रुर देखेंगे। युट्युब पर फिल्म एक क्लिक में उपल्ब्ध है, और जिसे ढुंढने के लिए मेरे 6-7 साल गुज़र गए थे!







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