१९९७ या उसके बाद दूरदर्शन पर दोपहर एक नया धारावाहीक प्रसारित हुआ था। शायद उसका नाम 'कच्चे रंग' था। नाम मुज़े अच्छी तरह याद नहीं है, लेकिन फिल्म का टाईटल सोंग यही था.... क्च्चे रंग उतर जाएंगे, मौसम है गुज़र जाएंगे। जो गुलज़ार साहब द्वारा लिखीत था।
यह गाना फिर दो-तीन साल बाद सनसेट पोईंट नामक गुलज़ार जी के आल्बम में शामिल हुआ. कुछ बदलाव के सात। जो था, 'कच्चे रंग उतर जाने दो, मौसम है गुज़र जाने दो!' टीवी सीरियल और ओडीयो आलबम, दोनों में संगीत था विशाल भारद्वाज का।
सीरियल में दिखाया गया था की, एक बड़ी आलीशान हवेली या बंगला था। जिसका मालिक के गुज़र जाने के बाद उनकी पत्नी अपनी दो-तीन बच्चॉं के साथ दुखी जीवन व्यतित कर रही थी। पैसो की ईंकम बंध हो जाने के बाद उनकी हालत खराब हो रही थी। उनसे कई लोग बंगला खरीदने की कोशिश करतें है। वह मां भी सोचती है की अगर बंगला बेच दिया जाए तो अच्छे पैसे मिल जाएंगे और बच्चीयों का जीवन संभल जाएगा।
बेहद उदास ईस धारावाहीक में हंसी / खुशी के द्रश्य बहुत कम थे। बेकग्राउंद संगीत बहुत ईमोशनल था और सिरीयल का ओवरओल फील बहुत अच्छा था। क्या आपने यह सीरियल देखा था?
अगर देखा हो तो ज़रुर कोमेंट कर के बताईए, जिस से कुछ मेरी भी यादें ताज़ा हो!

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