राजकुमार संतोषी एसे डिरेक्टर है जिन्हों ने अंदाज़ अपना अपना जैसी कोमेडी फिल्म भी बनाई है और घातक, घायल, दामिनी जैसी जोश चढानेवाली फिल्में भी बनाई है, साथ साथ उन्हों ने हैलो (१९९६) फिल्म में पिता की एक्टींग भी की है। लेकिन पब्लिक यानी की जनता जनार्दन ईनकी जोश का पारा चढाने वाली फिल्मों को सरआंखो पर उठा लिया।
एक बार हुआ यह की मै राजा हिंदुस्तानी फिल्म देखने के लिए अपने मित्रों के साथ फिल्म थिएटर गया था। राजा हिंदुस्तानी सिर्फ दो हफ्तों से लगी थी और ईसके सभी शो हाउसफुल जा रहे थे। करिश्मा कपूर की नई स्टाईल और सुपरहीट गानों से यह फिल्म 'बझ' पर थी। थिएटर में घुसते ही पता चल गया की टिकट मिलनेवाले नहीं है।
फिर हुआ यह की बाजु के थियेटर में घातक फिल्म चल रही थी। मैने कभी सनी पाजी की फिल्म टोकीज़ में देखी नहीं थी। ईस फिल्म के हीट होने के बारे में सुना था लेकिन कभी यह फिल्म देखने के बारे में सोचा नहीं था। वैसे भी मैने घायल देखी थी और लगा की यह भी वैसी ही फिल्म होगी।
लेकिन फिर कोई चारा न होने के कारण हम घातक देखने चले गए। पहले तो बनारस और सन्नी देओल का 'कुढपना' देखा। फिर एक एक कर के फिल्म की और परतें खुलती गई। अमरीश पुरी की बिमारी, बंबई शहर, मीनाक्षी शेषाद्री से दोस्ती ईन सबके बाद कातिया जैसे खूंखार विलन का अपना ही खौफ। छोटी बडी कई बातें है ईस फिल्म में जो ईस फिल्म पुरा देखने में मज़बुर करती है।
सिस्टम और कातिया से लडता, लोगों में दबा हुआ गुस्सा भडकाता सनी देओल मुज़े ईस फिल्म में... बाकी सारी फिल्मों से बहेतर लगे।
उसके बाद एक एक डाईलोग पर रोंगटे खड़े होना, एक एक सीन में पब्लिक का रिएक्शन, सनी देओल की एक्शन... शुरुआत से अंत तक फिल्म ईतनी दिलचस्प लगी की अभी भी कभी चैनल पर दीख जाती है तो चैनल स्कीप नहीं की जाती!
आगे सनी देओल की नरसिम्हा के बारे में पढे!

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