(मै बरसात में कागज़ की नाव की बात करने नहीं करुंगा! मै कोई Essay on Monsoon लिखने नहीं आया हुं, सिर्फ अपनी मिलीझुली बातें ही बता रहा हुं।)
वर्षाऋतु आए और बचपन याद न आए एसा कैसे हो सकता है! बरसातों में मेरा बचपन खिडकी के सलिए को थामे हुए गुज़रता था। वैसे पहली बारिश में तो नहाना बनता ही था, लेकिन अगर शाम को खेलने के समय अगर बारिश हो जाए तो भीग कर खेल पुरा करना सभी बच्चों की ज़िद्द रहती। यह हमारी प्रामाणिकता थी, बारिश के प्रति।
बारिश एक चमत्कार है। किस में यह ताकत है की तालाब को सूखा कर सके और फिर से भर सके? ईस विचार के आधार पर ... बारिश एक चमत्कार ही है। बारिश में कभी कभार सुरज का निकलना और उसे देखने के लिए पीछे ईंद्रधनुष का तैयार रहना एक महान घटना है।
लेकिन हम विज्ञान में विश्वास रखतें है। हम सब जानतें है की पानी कैसे भाप बन कर बादल बनता है और कैसे फिर से बारिश के रुप में वही पानी लौट आता है। हमें पता है की विज्ञान एक दिन बारिश के लिए भी स्वीच बना देगा। या कोई एप, जो आपके ईच्छानुसार तरह तरह की बारिश करवा सके।
फिर भले देखो या ना देखो। चाहे आप ओफिस में सड़ रहे हो, ट्राफिक में फंसे हो या टीवी के सामने जम्हाईयां लेते लेते बारिश को कोस रहे हो! लेकन वह भव्यातिभव्य घटना उपर आकाश में घटती रहती है।
खिडकी से टंगे हुए भी बारिश का लुफ्त लिया जा सकता है, एसा मेरा मानना था। बारिश जब भी होती है घर हो या क्लास रुम मेरा ध्यान बाकी सबसे ज्यादा खिडकी के बाहर चला जाता। ओफिस में भी बारिश के समय में छत पर जा कर या खिडकी खोल कर हाथ गीला ज़रुर करता हुं! अभी तक बच्चा जो हुं!
आज वही बचपन का दिन है। बारिश से भीगा भीगा! बारिश में यहां से वहां जाते लोगों को देखना एक अलग ही आनंद है। वटवृक्ष के पत्तो से बगुलों की लीद भी धुल गई है। धुल से भरी भरी सडक पानी से धुल जाने के बाद प्यारी लगती है। कुछ लोग परेशान है, कुछ स्वीकार कर चुके है, कुछ कौतूहल से ओतप्रोत है। कुछ वाहन छींटे उड़ा कर जा रहें है, कुछ गढ्ढों से बच कर।
बारिश की वजह से गर्मीयों से राहत की खुशी मध्यम वर्गीय लोगों को सर्वाधिक होगी। रेडियो पर बरसाती गानों की लडी सुन कर वही खुशी दोगुनी बढ जाती है। रात में एकाध छुटपुट मेंढक की ड्राउं ड्राउं मुझे गांव की याद दिला जाती है। सड्कों के किनारे कुछ ही दिनो हरी हरी घास ईस खुशी में निकल आती है, जाने मेयरसाब ईन्हें सदा के लिए किनारों पर बसने देंगे। ईन दिनों तरह तरह के किडों, पतंगो को देख कर लगता है की हां... हम सिर्फ मानव, गाय और कुत्ते ही नहीं है ईस दुनिया में।
जंगली पौधों की तरह बारिश कई भावनां और ईच्छाओं को भी मन में जाग्रुत करती है। अगर मन पाषाण हो चुका है फिर भी झंक्रुत तो करती ही है। जिस तरह नमीवाले मौसम में फर्श से पानी सुखने में देर और महेनत दोनों लगतें है, वैसे ही मन से बारिश से जन्मी भावनाए और यादें जल्दी जातें नहीं।
लेकिन आज काम पर लग जाना पडता है। रेईनकोट एक मानव निर्मित आवरण ही सही, लेकिन चमत्कार को मुज़ से अलग रकनेवाला काला जादु लगता है। फिर भी में बंद हथेली में बारिश की कुछ बूंदे अगले साल के लिए बचा कर रखता हुं।
आगे पढें 90s - बचपन की यादें!




No comments:
Post a Comment