Thursday, 22 September 2022

Oscar for India


जब हमें कोई मुवी बहुत अच्छी लगती है और खास कर के वह मुवी ब्लॉक बस्टर हो जाती है.... हम सोचतें है की यह मुवी को तो ऑस्कार मिलना चाहिए। लेकिन एसा होना मुश्किल है। आज तक कभी एसी फिल्मों को ऑस्कर नहीं मिला जो सिर्फ सुपरहीट हुई है। ऑस्कार जीतने के लिए कई क्राईटेरीया होतें है और बहुत से ज़जीस वोटींग के आधार पर बेस्ट फिल्म को चुनते है।

 
सत्यजीत रे, कल्पना लाज़मी, अमोल पालेकर, मीरा नायर, शेखर कपुर एसे कई आर्टीस्ट है जो फिल्म डाईरेक्ट करतें थे और उन्हों ने एसी फिल्म्स बनाई... जो ऑस्कार तक पहुंच सके। लेकिन मोडर्न आर्ट के मामले में विदेशी हमसे हंमेशा जीतते ही आए है। सो हमें कभी ऑस्कार नहीं मिल पाया। फिर बोलीवुड् ने भी कभी ऑस्कार के लिए मुवी बनानी नहीं चाही। सिर्फ आमिर या आशुतोष गोवारीकर अपनी तरह से कोशिश करते रहे। लेकिन वे भी ज्यादा सफल नहीं हो पाए।
 
अब यह हालत है की ब्लॉगर्स, युट्युबर्स और ईन्फ्ल्युएंसर्स ऑस्कार को 'खट्टे अंगुर' बताते हुए यह कह रहें है की ऑस्कार की कुछ ज्यादा वेल्यु नहीं है। ईसमें जीनते वाली फिल्म आर्थिक रुप से फ्लॉप होती है। कांस बर्लिन जैसे कुछ मल्टीनेशनल एवोर्ड् की वेल्यु वे भारत में बढा चढा कर दिखाना चाहतें है।
 
लेकिन, ऑस्कार निष्पक्ष एवोर्ड है और ईसमे पैसे या राजनीतिक दबाव से भी विक्षेप नहीं किया जा सकता। साम-दाम-दंड-भेद... वहां कुछ काम नहीं कर सकता। अगर एसा होता तो ऑस्कार एवोर्ड का ईतना नाम और सम्मान न होता।
 
बहुत से फिल्म मेकर्स समजतें है और चाहते भी है की भारत को एक गौरवशाली देश के रुप में दर्शा कर हम ओस्कार जीत सकतें है। लेकिन एसा नहीं हो सकता। लगान ईसका एक अच्छा उदाहरण है। हाल ही में मलियालम, बंगाली और मराठी फिल्म ईंडस्ट्री कुछ एसा काम कर रही है जो वर्ल्ड में नोटीफाई हो सके।
 
अब सवाल यह उठता है की कैसी फिल्म ऑस्कार जीत सकती है। अगर आप पीछले कुछ सालों की ओस्कार वीनर मुवीज़ देखें तो यह बहुत ही आसानी से दिखाई पड़ता है। जिन फिल्मों में एसी कहानी है, जिसी दुनिया ने क्भी देखा नहीं। एसी कहानी, जिस पर कभी कोई भी देश में फिल्म बनी नहीं। एसी कहानी जो बहुत सिंपल हो और एक सीदासादा ईंसान भी समज़ पाए। एसी फिल्म जो आपको एसा अनुभव दे, जो आपने पहले कभी फील न किया हो। एसी फिल्में ऑस्कार के नोमिनेशन तक पहुंच सकती है।

उदाहरण के तौर पर नोमेडलेंड 2021, पेरासाईट 2020 , ग्रीन बुक 2019 , द शेप ऑफ वोटर 2018.... एसी सब फिल्में ऑस्कर विजेता है। ईन फिल्मों को आपने देखी ही होगी। ईस में कहीं कोई देश के गौरवशाली ईतिहास के बारे में नहीं कहा गया है। ना ही ईनका बजेट हमारी बोलिवुद फिल्मों जितना बडा है! ईस में सीधे सादे तरीके से एक ईंसान की तकलीफें और उससे वह कैसे उगरता है यही दिखाया जाता है।  एसी फिल्में देख कर ईसे हम हमारी फिल्मों से कंपरे करना चाहिए। ताकी हम सच में वैश्विक फिल्म जगत में अपनी कुछ पहचान बना पाए। यह बहुत ज़रुरी है क्युं की पीछले कुछ सालों से हंगेरीयन, तुक्रीश, ईरानी जैसी हमसे कई गुना छोटी फिल्म ईंडस्ट्री भी विश्व सिनेमा में अपना डंका बजा रही है। हम साल की 800-900 फिल्में एनाउंस करते है और करीबन 250-300 बना भी देते है।  लेकिन विश्व में हमारी फिल्मों की पहचान न के बराबर है।
 
अच्छी बात यह है की अभी कई सुपरहीट फिल्मों को छोड कर ईंडिया ने अपनी 'ध लास्ट फिल्म शो' नाम की फिल्म भेजी है। यह फिल्म ऑस्कार के लिए वाकई अच्छी लग रही है।
 
 

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