बचपन में मेरी ईश्वर पर श्रद्धा बहुत 'व्यावहारिक' थी! व्यावहारिक का मेरा अर्थ है की, अगर में सच्चे दिल से कुछ मांगता हुं तो वह मुजे मिलना ही चाहिए। लेकिन मैने एक बार मांगा तो क्या मांगा? पांच का नोट!
मेरे पापा से मैने पांच का नोट यह कह के लिया था की... मुजे सिर्फ रखने के लिए पैसे चाहिए। मुझे घरवाले बाहर की चीजे खाने से रोकना चाहते थे। तो मैने बहाना कर लिया की अगर साईकिल पंक्चर हो गई तो?
उस समय पैसे मिल तो गए, लेकिन ठीक से याद नहीं की पैसे खो कैसे गए.. या किसी को देने पड़ गए। लेकिन मेरी हालत खराब थी, क्युं की पापाने उसी दिन वह नोट दिया था और शाम को अगर पुछते तो मै क्या जवाब देता?
मैने ईश्वर से पैसे मांग लिए! वह भी पांच की नोट! यह बात मैने अपने दो तीन मित्रों को भी बताई। फिर बात यह हुई की स्कूल से छुटते समय मुझे साईकिल स्टेंड में मेरी साईकिल के पास ही पांच का मुड़ा हुआ नोट मिला। मै खुशी से फुला नहीं समा रहा था और बहुत खुश हो कर घर लौटा। मेरी ईश्वर के प्रति श्रद्धा अथाग बढ गई।
सालों बाद अब यह विचार आया की...पक्का मेरे किसी दोस्त ने ही वहां वह पांच का नोट रखा होगा। लेकिन अफसोस की यह विचार मुज़े कई वर्षों बाद आया, और वह दोस्त मुज़से छुट गए थे।
वैसे ईश्वर प्र आस्था ईसलिये भी बनी रही है की, उसने मुझे दोस्त.. ईतने अच्छे दिये थे!
वैसे ईश्वर प्र आस्था ईसलिये भी बनी रही है की, उसने मुझे दोस्त.. ईतने अच्छे दिये थे!

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