टोबू साइकिल के बाद मेरे पापा ने जो मुझे दो पहिए वाली साइकिल खरीद कर दी थी... उसे 'हीरो जेट'कहा जाता था। तो ऐसा नहीं था कि मुझे साइकिल स्टोर पर ले जाया गया था, बल्कि मेरे पापा खुद एक साईकिल लेकर के आए थे - जो साइज में अपनी बड़ीवाली साइकिल से थोड़ी छोटी थी। और वह डार्क ब्राउन कलर की थी। एक-दो सालों बाद मुझे पता चला कि यह एक लेडीस साइकिल है!!!
मैसेज अच्छा वैसे इसमें शर्माने जैसी कोई बात नहीं थी, क्योंकि मेरे स्कूल में मेरे क्लास में बहुत से बच्चे ऐसे ही साईकिल युज़ करते थे। यह साइकिल मैं स्कूल में ले जाने की हिम्मत नहीं कर पाया था क्योंकि मेरा कोई साथ ही नहीं था जो मेरे घर से स्कूल तक साइकिल पर जाता हो।
सातवीं कक्षा तक मैंने अपने एक दोस्त को पीछे बैठा कर डबल सवारी चलाना सीख लिया था। फिर मैं उसी दोस्त को बैठा कर पहली बार स्कूल में अपनी साइकिल ले जा पाया। भले उसको पीछे बिठाना पड़ा और डबल सवारी जाना पड़ा, लेकिन साइकिल को 'पहली बार' स्कूल में ले जाने की खुशी बहुत ज्यादा थी!
इस साइकिल से मैं कई बार गिरा था, और घुटनों में चोट लगी थी। कई बार इस पर मैंने अलग-अलग छोटे स्टीकर लगाएं एक बार काले ऑयल पेंट से नाम भी लिखा। इसके लिए साइकिल का पंप भी मंगवाया और इसका पंचर बनाना भी सीख लिया!यह साइकिल में ज्यादा नहीं चला पाया सातवीं से दसवीं की शुरूआत तक यह साइकिल स्कूल लेकर गया।
उसके बाद मैंने तीसरी साइकिल खरीदी जिसकी कहानी में आगे आपको सुना रहा हूं।

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